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आप सभी मित्रों को मेरा प्रतिभा सूरज चौहान का आत्मीय नमस्कार!
आज मैं आप सभी से एक मन के विषय पर बात करने आई हूं।
एक तरफ जब लोग पद, प्रतिष्ठा, पैसे और अपनी रोजमर्रा की ज़रूरतों के लिए संघर्ष करते हैं, वहां दूसरों के लिए सोचना अपने आप में बड़ी बात है।
ऐसी ही एक बड़ी शख्सियत का नाम है भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री सावित्री बाई फुले की, जिनकी आज जयंती है। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर नारी अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे उल्लेखनीय कार्य किए जो दुनिया भर के लिए मिसाल बन गए। वे प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

जीवन की तमाम उलझनों को हंसते-हंसते झेलने वाली सावित्री बाई जब स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा।

सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं। आइये ऐसी महान हस्ती को हम सब नमन करें और उनकी बताई सीख को जीवन में उतारें।

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