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परोपकार करना परम धर्म: पप्पन सिंह गहलोत

    संसार में  मनुष्य सहित पशु, पक्षी आदि भिन्न-भिन्न योनियां हैं, इन सभी में हम असंख्य बार आ जा चुके हैं। इस जन्म में भी हम पूर्वजन्म से मरने के बाद ईश्वर की व्यवस्था जाति, आयु, भोग के अनुसार यहां आये हैं। यहां से कुछ समय बाद हमारी मृत्यु होगी और हम पुनः जाति, आयु और भोग के अनुसार नया जन्म प्राप्त करेंगे। हमारे शुभ कर्मों से हमें इस जन्म में भी सुख मिलेगा और परजन्म में भी। इस जन्म में अशुभ कर्म करने पर हमारा यह जीवन भी सुख व शान्ति भंग करने वाला हो सकता है और आने वाला जन्म तो होगा ही। 

 बहुत से लोग अच्छे बुरे दोनों प्रकार के कार्य करते हैं, फिर भी सुखी रहते हैं। इसका कारण यह है कि वह पूर्व कृत शुभ कर्मों के कारण सुखी है। इस जीवन में बुरे कर्मों का परिणाम अवश्यमेव दुःख होगा। वह जब मिलेगा तो मनुष्य त्राहि त्राहि करेगा। अस्पतालों व ट्रामा सेन्टरों में जाकर इस तथ्य की पुष्टि की जा सकती है। ईश्वर न करे हम में किसी को इस स्थिति से गुजरना पड़े। इसी लिए ईश्वरोपासना, यज्ञ एवं परोपकार आदि कर्मों का करना आवश्यक है। 

अतः मनुष्य को ज्ञान प्राप्ति और सद्कर्मों के प्रति सावधान रहना चाहिये। उसे सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का तो अवश्य ही अध्ययन करना चाहिये और उसकी शिक्षाओं को बुद्धि की कसौटी पर कस कर उन पर आचरण करना चाहिये। इससे मनुष्य का यह जन्म व परजन्म दोनों सुखी व उन्नत होंगे, यह निश्चित है।

 वैदिक साहित्य व सत्यार्थप्रकाश को पढ़कर मनुष्य को अपने पूर्वजन्म व परजन्म विषय की मूलभूत जानकारी मिलती है।

आज का वेद मंत्र 

ओ३म् येभ्यो माता मधुमत्पिन्वते पय: पीयूषं धौरदितिरद्रिबर्हा:। उक्थशुष्मान् वृषभरान्त्स्वप्नसस्ताँ आदित्याँ अनुमदा स्वस्तये। (ऋग्वेद १०|६३|३)

अर्थ :- जिन विद्वानों के लिए प्रभावशाली मेघ सदृश दानशीलता, अखण्ड वेद विद्या व पृथ्वी माता अति मधुर अमृत व दुग्धादि को देतीं हैं, वे अत्यंत बल वाले, श्रेष्ठों का का पौषण करने हमारे, सुकर्मी, अखण्ड व्रत वाले आदित्य ब्रह्मचारी हमारा मंगल करने वाले हो।

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