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आखिर क्यों महादेव का नाम पड़ा नीलकंठ?

जानें श्रावण मास की कैसे हुई शुरुआत: पप्पन सिंह गहलोत

सावन मास और भगवान शिव की आराधना का महोत्सव शुरू हो गया है. धर्म के अनुसार पूजा का तीसरा क्रम भी भगवान शिव है. शिव ही अकेले ऐसे देव हैं जो साकार और निराकार दोनों हैं. श्रीविग्रह साकार और शिवलिंग निराकार. भगवान शिव रुद्र हैं. हम जिस अखिल ब्रह्मांड की बात करते हैं और एक ही सत्ता का आत्मसात करते हैं, वह कोई और नहीं भगवान शिव अर्थात रुद्र हैं.

कैसे शुरू हुआ श्रावण मास?
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता और दानवों ने मिलकर समुंद्र मंथन किया तो हलाहल विष निकला. विष के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि में हलचल मच गई. ऐसे में सृष्टि की रक्षा के लिए महादेव ने विष का पान कर लिया. शिव जी ने विष को अपने कंठ के नीचे धारण कर लिया था. यानी विष को गले से नीचे जाने ही नहीं दिया. विष के प्रभाव से भगवान भोले का कंठ नीला पड़ गया और उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ा.

विष का ताप शिव जी के ऊपर बढ़ने लगा. तब विष का प्रभाव कम करने के लिए पूरे महीने घनघोर वर्षा हुई और विष का प्रभाव कुछ कम हुआ. लेकिन अत्यधिक वर्षा से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपने मस्तक पर चन्द्र धारण किया. चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक है और भगवान शिव को इससे शीतलता मिली.

ये घटना सावन मास में घटी थी, इसीलिए इस महीने का इतना महत्व है और इसीलिए तब से हर वर्ष सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाने की परम्परा की शुरुआत हुई. तो सावन में आप भी शिव का अभिषेक कीजिए. वो आपकी हर परेशानी दूर कर देंगे.

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